श्री सूतजी ऋषियों को कहने लगे विधि सहित इस एकादशी व्रत का महात्म्य तथा जन्म की कथा भगवान् श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को सुनाई थी, सतयुग में एक महा भयंकर राक्षस मुर नाम का प्रकट हुआ, उसने अपनी शक्ति से देवताओं को विजय किया और अमरावती पुरी से नीचे गिरा दिया, बेचारे मृत्युलोक की गुफाओं में निवास करने लगे और कैलाशपति की शरण में जाकर दैत्य के अत्याचारों का तथा अपने महान् दुःख का वर्णन किया। शंकरजी कहने लगे--आप भगवान् विष्णु की शरण में जाइए, आज्ञा पाकर सब देवता क्षीर सागर में गए वहाँ शेष की शय्या पर भगवान् शयन कर रहे थे, वेद मन्त्रों द्वारा स्तुति करके भगवान् को प्रसन्न किया प्रार्थना करके इन्द्र कहने लगा, एक नाड़ा जंग नाम का दैत्य ब्रह्म वंश से चन्द्रावती नगरी में उत्पन्न हुआ, उसके पुत्र का नाम मुर है। उस मुर दैत्य ने हमें स्वर्ग से निकाल दिया आप ही सूर्य बनकर जल का आकर्षण करता है, आप ही मेघ बनकर जल बरसाता है, भूलोक के बड़े बड़े कर्मचारी देवता सब उसके शरणार्थी बन चुके हैं। अतः आप उस बलशाली दैत्य को मार कर हमारा दुःख दूर कीजिए ।

 

भगवान् बोले--हे देवताओ ! मैं तुम्हारे शत्रु का शीघ्र संहार करूंगा, आप निश्चिन्त होकर चन्द्रावती नगरी पर चढ़ाई करो, मैं तुम्हारी सहायता करने को पीछे से आऊंगा आज्ञा मानकर देवता लोग वहाँ आए जहाँ युद्ध भूमि में मुर दैत्य गरज रहा था, युद्ध प्रारम्भ हुआ, परन्तु मुर के सामने देवता घड़ी भर न ठहर सके. भगवान् विष्णुजी भी आ पहुॅचे, सुदर्शन चक्र को आज्ञा दी, शत्रुओं का सहार करो, चक्र ने चारों ओर सफाई कर दी एक मुर दैत्य का सिर न काट सका और न गदा उसकी गर्दन तोड़ सकी ।

 

भगवान् ने सारंग धनुष हाथ में लिया बाणों द्वारा युद्ध प्रारम्भ हुआ परन्तु शत्रु को न मार सके । अन्त में कुश्ती करने लगे, हजारों वर्ष व्यतीत हो गए परन्तु प्रभु का दाव बन्ध एक न सफल हुआ। मुर दैत्य पर्वत के समान कठोर था, प्रभु का शरीर कमल के समान कोमल था, थक गये मन में विश्राम की इच्छा उत्पन्न हुई, शत्रु को पीठ दिखाकर भाग चले, आपकी विश्राम भूमि बद्रिकाश्रम थी, वहाँ एक गुफा बारह योजन की थी हेमवती उसका नाम था, उसमें घुसकर सो गए मुर दैत्य भी पीछे-पीछे चला आया, सोते हुए शत्रु को मारने के लिए तैयार हो गया उस समय एक सुन्दर कन्या प्रभु के शरीर से उत्पन्न हुई, जिसके हाथ में दिव्यास्त्र थे उसने मुर के अस्त्र-शस्त्र को टुकड़े-टुकड़े कर दिया, रथ भी तोड़ दिया फिर भी उस शूरवीर ने पीठ न दिखाई कुश्ती करने को कन्या के समीप आया, कन्या ने धक्का मारकर गिरा दिया और कहा--यह मल्ल युद्ध का फल है, जब उठा तो उसका सिर काट कर कहा यह हठ योग का फल है।

 

मुर की सेना पाताल को भाग गई । भगवान् निद्रा से जागे तो कन्या बोली--यह दैत्य आपको मारने की इच्छा करके आया था। मैंने आपके शरीर से उत्पन्न होकर इसका वध किया, भगवान् बोले- तुमने सर्व देवताओं की रक्षा की है, मैं तुम पर प्रसन्न हूँ, वरदान देने को तैयार हूँ, जो कुछ मन में इच्छा हो, प्रकट मांग लो। कन्या बोली जो मनुष्य मेरा व्रत करें उनके घर में दूध, पुत्र, धन का विकास रहे अन्त में आपके लोक को प्राप्त करें। भगवान् बोले--तू एकादशी तिथि को उत्पन्न हुई है इस कारण तेरा नाम उत्पन्ना एकादशी प्रसिद्ध होगा। जो श्रद्धा भक्ति से तेरा व्रत करें उनको सब तीर्थों के स्नान का फल मिलेगा, घोर पापों से उद्धार करने वाला तेरा व्रत होगा ऐसा कहकर भगवान् अन्तर्ध्यान हो गए। पतित-पावनी विश्व-तारनी का जन्म मार्गशीर्ष मास के कृष्णपक्ष में हुआ। इस कारण इसका नाम उत्पन्ना प्रसिद्ध है ।

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