भगवान् कृष्ण बोले-हे युधिष्ठिर ! माघ मास कृष्ण पक्ष की एकादशी का नाम षटतिला है। इसमें (१) तिल से स्नान (२) तिल से उबटन (३) तिल का हवन (४) तिलाञ्जली तिल सहित ठाकुर की चरणोदिक (५) तिल का भोजन (६) तिल का दान, यह षट्तिला कहलाती है । इसका महात्म्य पुलस्त्य ऋषि ने दालभ्य को सुनाया था, नारद ऋषि को मैंने आगे सुनाया, क्योंकि इसमें मेरी पूजा की जाती है। इस कारण नारद मेरे पास आया और मैंने आँखों देखी बात सुनाई-एक ब्राह्मणी थी । वह चन्द्रायणादि राज्य व्रत किया करती थी, व्रत करते-करते दुर्बल हो गई। व्रतों के प्रभाव से उसके समस्त पाप नष्ट हो गए। मैंने विचार किया अब यह मरने वाली है, स्वर्ग अवश्य जायेगी, परन्तु खाली हाथ । जाकर इससे कुछ दान-माँग लूँ जिससे स्वर्ग का तोशा भी कुछ बन जाये।

 

मैं बैकुण्ठ लोक को त्याग कर मृत्यु लोक में आया, वामन सदृश्य छोटा रूप बनाकर ब्राह्मणी के द्वार का भिक्षुक हुआ उसने मुझे मृत्युपिंड दे दिया। कुछ दिन के बाद उसने शरीर त्याग किया, व्रतों के प्रभाव से स्वर्ग गई और अपने गृह में केवल मृत्युपिंड ही देखा, अन्य वस्तुओं से शून्य था । अपने बिगड़े हुए भवन को देख न सकी, शीघ्र मेरी शरण में आकर पुकार करने लगी आप अच्छे फलदाता हो मेरे चन्द्रायणादि व्रतों का फल निष्फल कर दिया। मैंने उसे उत्तर दिया, जो व्रत आपने किये हैं पापों को भस्म कर वह स्वर्ग में ले आए हैं और जो हाथ से दिया वह भी आपको मिल रहा है। ब्राह्मणी बोली यह दरिद्र अब कैसे कटेगा ? मैंने उससे कहा तुमको देवांगना देखने आयेंगी । तुम द्वार बन्द रखना, प्रथम षट्तिला एकादशी का महात्म्य सुन लेना, वह ब्राह्मणी अपने भवन में गई द्वार बन्द कर दिया ।

 

देव कन्या दर्शन को आयीं और कहा द्वार खोलो मुख दिखाओ, ब्राह्मणी बोली--पहले मुझे षट्तिला एकादशी के महात्म्य को सुनाओ। देव स्त्रियाँ बोलीं-बिगड़े हुए भाग्य को संवारने वाली षटतिला एकादशी है। गौ हत्या, ब्रह्महत्या इत्यादि महापाप करने वाले को भी मुक्त कर देती है। द्वार खोला तो मृत्युपिंड का आम बन गया। जब व्रत किया तब सारे गृह में नन्दन वन की विभूतियाँ प्रकट हो गई। इस व्रत में एक तिल दान करने से एक हजार वर्ष तक व्रतकर्ता को स्वर्ग मिलता है ।

Tags