कथा :- हिमालय पुत्री ने शंकर को पतिरूप में पाने के लिये कठिन तपस्या प्रारम्भ की उसी घोर तपस्या के समय नारद जी राजा हिमालय के पास आये और कहा विष्णु भगवान आपकी कन्या पार्वती के साथ विवाह करना चाहती हैं । नारद की बात को हिमालय ने स्वीकार कर लिया । तत्पश्चात नारदजी विष्णु के पास गये और कहा कि आपका विवाह हिमालय ने पार्वती के साथ करना तय कर दिया है । इसकी स्वीकृति दें । पिता हिमालय ने पार्वती को भगवान विष्णु के साथ विवाह सम्बन्ध में बतलाया तो उसे बहुत दुःख हुआ और एक सखी से बोली मैं इधर भगवान शंकर के साथ विवाह करने के लिए कठोर तपस्या प्रारम्भ कर रही हैं उधर हमारे पिताजी विष्णु के साथ सम्बन्ध करना चाहते हैं । यदि तुम मेरी सहायता कर सको तो बोलो, अन्यथा मैं प्राण त्याग दूंगी ।

सखी ने सांत्वना देते हुए कहा कि मैं तुम्हें ऐसे वन में ले चलूँगी कि तुम्हारे पिता को पता न चलेगा । इस प्रकार पार्वती सखी के साथ घने जंगल में चली गई । इधर पिता हिमालय को घर में इधर-उधर खोजने पर जब पार्वती को न पाया तो बहुत दुखी हुए । वचन भंग की चिन्ता ने उन्हें मुर्छित कर दिया । तब सभी लोग पार्वती की खोज में लग गये। उधर सखी सहित पार्वती एक गुफा में शंकर के नाम पर तपस्या करने लगी । भाद्रपद शुक्ल तृतीया को उपवास रखकर पार्वती ने शिवलिंग स्थापित करके पूजन तथा रात्रि जागरण किया । पार्वती के इस कठिन तप से शंकर भगवान को आना पड़ा तथा पार्वती की माँग तथा इच्छा के अनुसार उसे अर्धांगिनी रूप में स्वीकार करना पड़ा। तत्पश्चात शंकर तुरन्त कैलाश पर्वत पर चले गये प्रात: बेला मे जब पार्वती पूजन सामग्री नदी में छोड़ रही थी कि हिमालय राजा उस स्थान पर पहुँच गये । वे पार्वती को देखकर रोते हुए पूछने लगे बेटी ! तुम यहाँ कैसे आ गई ? तब पार्वती ने विवाह वाली प्रतिज्ञा सुना दी । पार्वती की इच्छा पूर्ति करने हेतु उन्होंने शास्त्र विधि से पार्वती का विवाह शिव से कर दिया । सखी द्वारा हरी जाने पर इसका हरितालिका नाम पड़ गया । जो स्त्री इस व्रत को परम श्रद्धा से करेगी उसे पार्वती के समान ही अचल सुहाग मिलेगा ।

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