यमराज (धर्मराज) जी की बारे में – हिन्दू धर्म के अनुसार यमराज मृत्यु के देवता हैं। भगवन सूर्य के पुत्र है, यमराज जी एक जुड़वां बहन यमुना (यमी) है। यमराज की सवारी भैंसे को माना जाता है | यमराज जी जीवों के मरने के बाद, उनकी आत्मा को उनके अच्छे, बुरे कर्मों के आधार पर स्वर्ग और नरक में भेजते है | वे परम भागवत, बारह भागवताचार्यों में हैं। यमराज दक्षिण दिशा के दिक् पाल कहे जाते हैं।
यम, धर्मराज, मृत्यु, अन्तक, वैवस्वत, काल, सर्वभूतक्षय, औदुभ्बर, दघ्न, नील, परमेष्ठी, वृकोदर, चित्र और चित्रगुप्तइन है | इन्ही चौदह नामों से यमराज की आराधना की जाती है।
धर्मराज , सूर्यपुत्र , सरण्युनन्दन , मृत्युदेव , काल , यम आदि
Dharmraj Ki Kahani In Hindi (धर्मराज की कहानी हिंदी में) : एक गांव में एक बुढ़िया रहती थी, वह बहुत व्रत-पूजन करती थी। उसकी आयु पूरी होने पर, उसे यमदूत लेने आए | और वह उनके साथ चलने लगी । रास्ते में चलते-चलते एक गहरी नदी आई तो, यमदूत ने उससे पूछा कि माता तुमने गोदान किया है या नहीं? बुढ़िया ने उसी समय पूरी श्रद्धा से गाय का ध्यान किया, तो गाय उसके समक्ष आ गई। फिर बुढ़िया उस गाय की पूंछ पकड़कर नदी आसानी से पार कर गई। कुछ देर बार उसके रास्ते में काले कुत्ते आ गए। तब यमदूत ने कहा कि कुत्तों को खाना दिया था या नहीं? बुढ़िया ने फिर कुत्तों का ध्यान किया तो वे रास्ते से चले गए।
बुढ़िया फिर से आगे बढ़ने लगी तब उसके रास्ते में कौए आ गए और उन्होंने उसके सिर में चोंच मारनी शुरु कर दी तो यमदूत बोले कि किसी ब्राह्मण की बेटी के सिर में तेल लगाया था या नहीं? बुढ़िया ने फिर ब्राह्मण की बेटी का ध्यान किया तो कौए वापस चले गए। कुछ आगे बढ़ने पर बुढ़िया के पैर में कांटे चुभने शुरू हो गए यमदूत बोले कि खड़ाऊ का दान किया है या नहीं? बुढ़िया ने उनका ध्यान किया तो खड़ाऊ उसके पैरों में आ गई। बुढ़िया फिर आगे बढ़ी तो फिर चित्रगुप्त जी ने यमराज से कहा कि आप यहां किसे लेकर आए हो?
तब यमराज जी बोले कि बुढ़िया ने दान-पुण्य तो बहुत किए हैं | लेकिन उन्होंने अपने जीवन में धर्मराज जी के लिए कुछ नहीं किया। इसलिए आगे के द्वार इसके लिए बंद हैं। धर्मराज की सारी बात सुनने के बाद बुढ़िया बोली कि, आप मुझे सिर्फ सात दिन के लिए धरती पर वापस भेज दें। मैं पूरी श्रद्धा से धर्मराज जी का व्रत और उद्यापन करके वापस यहां लौट आऊंगी। यमराज ने उन्हें धरती पर वापस भेज दिया।
बुढ़िया अपने गांव आ गई और गांव वालों ने उसे भूतनी समझकर अपने घर के दरवाजे बंद कर दिए। वह जब अपने घर गई तो उसके बहू-बेटे ने भी डर के मारे दरवाजे बंद कर दिये। बुढ़िया ने कहा कि मैं भूतनी नहीं हूं, मैं तो धर्मराज जी की आज्ञा से सिर्फ 7 दिन के लिए धरती पर वापस आई हूं। इन सातों दिनों में मैं धर्मराज जी का व्रत और उद्यापन करुंगी जिससे मेरे लिए परलोक के रास्ते खुल जाएंगे।
बुढ़िया की बातें सुनकर बहू-बेटे उसके लिए पूजा की सामग्री ले आए। लेकिन जब बुढ़िया कहानी कहती है तब वह हुंकारा नहीं भरत। जिससे बुढ़िया बाद में अपनी पड़ोसन को कहानी सुनाती है और वह हुंकारा भरती है। इस तरह से सात दिन धर्मराज की विधि विधान व्रत पूजा और उद्यापन करने के बाद धर्मराज जी बुढ़िया को लेने के लिए विमान भेजते हैं।
स्वर्ग से आए विमान को देख उसके बहू-बेटों के साथ सारे गांववाले भी स्वर्ग जाने को तैयार हो गए। बुढ़िया ने कहा कि तुम कहां तैयार हो रहे हो? मेरी कहानी तो सिर्फ मेरी पड़ोसन ने सुनी है इसलिए वही मेरे साथ जाएगी। तब सारे गांववाले बुढ़िया से धर्मराज जी की कहानी सुनाने का आग्रह करने लगे तब बुढ़िया उन्हें भी कहानी सुना देती है।
कहानी सुनने के बाद गांव के सभी लोग विमान में बैठकर स्वर्ग जाते हैं तो धर्मराज जी कहते हैं मैने तो विमान केवल बुढ़िया को लाने के लिए भेजा था। तब बुढ़िया माई ने कहा कि हे धर्मराज जी! मैने अपने जीवन में जो भी पुण्य किए हैं उसमें से आधा भाग मैं आप गांववालों को देना चाहती हूं इस तरह से धर्मराज ने ग्रामवासियों को भी स्वर्ग में जाने दिया।
हे धर्मराज महाराज! जैसे आपने बुढ़िया और उसके गांव के सभी लोगों को स्वर्ग में जगह दी उसी तरह से हमें भी देना। साथ ही कहानी सुनकर हुंकारा भरने वालों को भी और कहानी कहने वाले को भी परलोक में जगह देना।
धर्मराज महाराज जी की जय!
यमराज महाराज जी की जय!
पौराणिक कथाओं के अनुसार अपनी इच्छा के आप एक साल सुनो या 6 महीने या सात दिन सुने पर धर्मराज जी की कहानी जरूर सुननी चाहिए। और इसके बाद उसका उद्यापन कर लेना चाहिए। उद्यापन में काठी, छतरी, टोकरी, टोर्च, साड़ी ब्लाउज का बेस, चप्पल, बाल्टी रस्सी, छ: मोती, छ: मूंगा, यमराज जी की लोहे की मूर्ति, लोटे में शक्कर भरकर, पांच बर्तन, धर्मराज जी की सोने की मूर्ति, चांदी का चांद, सोने का सूरज, चांदी का साठिया ब्राह्मण को दान में देना चाहिए।
नोट : ध्यान रखें कि प्रतिदिन चावल का साठिया बनाकर ही ये कहानी सुनी जाती है।
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